Who we are?

आज सारी दुनिया महिला सशक्तिकरण की बाते कर रही है। महिला सशक्तिकरण हो यहां तक तो ये अच्छी बात है, मगर जब कानून, अपने संविधान के मूल सिद्धान्त से हटकर, लिंगभेद आधारित बनने लगे, तब इसका विरोध करना हर भारतीय का फर्ज हो जाता है। जब पुरूषों का शोषण करना, बात बात पर महज आरोप लगा देने भर से पुरूषों की कमाई और सम्पत्ति छीनने को महिला अधिकार बताया जाने लगा है, तो इस पर हम लोगों को कड़ी आपत्ति है। पुरूषों की सुनवाई न करना, यहां तक कि पूरी पुरूष प्रजाति को अपराधी की तरह देखा जा रहा है, ये गलत है। इसलिए खासतौर से इस लिंगभेद को बराबर करने/खत्म करने के लिए इस राजनैतिक दल का गठन किया गया है।

जब कानून ही पुरूष विरोधी बनने लगे, तो कानून में बदलाव के लिए जरूरी हो जाता है कि कानून बनाने वाली संस्था, अर्थात लोक सभा व विधान सभा में अपने दल के सदस्यों का पहुंचना बहुत जरूरी है। ऐसा नहीं है कि ये अचानक लिया हुआ फैसला है। इससे पहले विगत 15 वर्षो में हमारे संगठन के लोग विभिन्न राजनैतिक दलों से मिले और काफी प्रयास किया कि कानून लिंगभेद आधारित न होकर दोषी को सजा देने के लिए बनें, लेकिन ऐसा हुआ नहीं, सारे कानून महिला तुष्टिकरण और पुरूष शोषण के लिए बनने लगे। इस नतीजा ये रहा कि आज आत्महत्या करने वाले दुनिया के लोगों में भारत में सबसे ज्यादा आत्महत्या भारत के लोग करते है, जिसमें महिलाओं से दोगुनी से भी ज्यादा संख्या में पुरूष आत्महत्या कर रहे हैं और इन आत्महत्याओं में सबसे बड़ा कारण घरेलू कलह है, जिसका मौजूदा कानूनों ने महिला उत्थान के नाम पर इसका बाजारीकरण कर दिया है। लोग, खासतौर से पुरूष, यकीन नहीं करते कि महिला से ज्यादा पुरूष मर रहे हैं और जब स्वयं फंसते हैं तब उनकी सुनने वाला कोई नहीं होता । भारत में प्रतिवर्ष लगभग 90,000 पुरूष आत्महत्या कर रहे है, इतना तो किसान या किसी युद्ध में या किसी आतंकवादी हमले में लोग नहीं मरते जितना इस पुरूष विरोधी मानसिकता और गिरफ्तारी जैसे कानूनी आतंक के कारण पुरूष मर रहे हैं -



NCRB द्वारा जारी सन 2015 के आंकड़ों के अनुसार 42,088 महिलाओं के सापेक्ष् कुल 91,528 पुरूषों ने आत्महत्या की।
इनमें विवाहित 28,325 महिलओं के सापेक्ष, महिलाओं से दोगुने से अधिक 64,527 विवाहित पुरूषों को आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ा, जिसमें डी०एम०, ए०डी०एम० व एस०एस०पी० जैसे लोग शामिल हैं। इसके बावजूद भी पुरूषों के प्रति हमदर्दी के बजाय पुरूषों के शोषण के लिए कानून बनते जा रहे हैं।


लोग मर रहे हैं, परिवार टूट रहे हैं। घरेलू विवादो में महिला आयोग जैसी संस्थायें भी केवल बहू का पक्ष सुनती है, सास और विवाहिता ननदें, जो कि महिला होती है, उनकी सुनवाई नहीं होती। ऐसे में परिवार बचाने की पूरी जिम्मेदारी पति पर ही आ जाती हैा घरेलू विवादों को थाने-पुलिस और कोर्ट-कचेहरी में पति-परिवार को घसीटा जा रहा है। राई को पहाड़ बनाकर धंधा चलाया जा रहा है जिसकी बजह से आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण "घरेलू विवाद" बन गया है -


NCRB के उक्त चार्ट से स्पष्ट है कि भारत में लोग गरीबी, बेरोजगारी और सम्पत्ति विवादों से कहीं ज्यादा घरेलू विवादों के कारण मर रहे हैं, जिसका सबसे बड़ा शिकार पुरूष वर्ग है, फिर भी "पुरूष आत्महत्या" आज की सरकारों के लिए कोई मुद्दा तक नहीं हैं। इसलिए आज जब सारी दुनिया महिला अधिकार और पुरूष जिम्मेदारी की बात करती है ऐसे में "मेरा अधिकार राष्ट्रीय दल" पुरूषों के अधिकारों और सम्मान की लड़ाई लड़ेगा और उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाले हर कानून का विरोध करेगा साथ ही महिला के अधिकारों के साथ-साथ उनकी देश/परिवार के प्रति जिम्मेदारियों की भी बात करेगा, क्योंकि - "हर पुरूष अत्याचारी नहीं ...और हर महिला बेचारी नहीं"

हम लोग एक योद्धा हैं जो कि समाज में व्याप्त पुरुष विरोधी मानसिकता के खिलाफ लड़ रहे हैं. इस कठिन लड़ाई में हमें आपके साथ की ज़रूरत है ताकि लोग आत्महत्या जैसा कदम न उठायें और कानून में विश्वास कर सकें.

हमारा प्रयास है कि परिवारों का सम्मान बना रहे और उन्हें टूटने और क़ानूनी आतंक से बचाया जा सके.

“जब होगा पुरुषों का सम्मान, तभी बनेगा देश महान”.